| نميدانم دلم با من چه ها كرد |
| اسيـر باده و ميخانـه ها كرد |
| بِبُـردم در ره وادي حيــرت |
| نشان وصلِ حق را آشنا كرد |
| چرا امشب دل من بي قراره |
| هـواي ديـدن معشـوق داره |
| زنم دستان به زانو از سر عشق |
| كه تـا جونـم زسينه سـر برآره |
| نمي دانم چرا حيرانم امشب |
| هـم آواي دل نالانـم امشب |
| ندارم غير عشقش هيچ در دل |
| ز هجـر روي او گريانـم امشب |
| رفيـقان ميــل ديــدارش نمــودم |
| به شوق ديدنش چون شمع سوزم |
| به ديـدارش رَوَم با ديده ي دل |
| وصـال از دل بـه دلدارم بجويم |
| چراغ ديده مون پُر نوره امشب |
| وصـال كوي او آسـونه امشب |
| خداونـدا نمـا راهـم به سويـت |
| هدايت كن دل مستونه امشب |
| دل پُـردردم امشب بـي قراره |
| نمـي دانـم تمنّـاي كه داره |
| اگر خون جـاي اشك از ديـده باره |
| غم عشق است و سَر از دل بر آره |
| زعشقت يـا علـي ديـوانه گشتـم |
| چو مجنوني برون از خانه گشتم |
| نشـانت را گرفتـم در خـرابـات |
| شدم رسوا و هم افسانه گشتم |
| نظر كردم به هر سويي بديدم |
| ولايت را زِ هر روحـي بديدم |
| به ديرو مسجد و كعبه نشستم |
| نشـانت از خَـم ابـرو بـديـدم |
| ز كوي و برزنت گيرم سراغت |
| زِعاشق جويم و عارف جمالت |
| به نامت چون شود جاري زبانم |
| شـوم مدهوش از سّـر كمالت |
| در اين عالم ز عشقت بي قرارم |
| قراري جز به كويـت من ندارم |
| نباشد غير عشقت هيچ در سر |
| شـده گريـه انيـس روزگـارم |
| من عباسم به لب ذكر تو دارم |
| جـدا از غيـر و تنها در ديـارم |
| به جـرم عاشقي جايي ندارم |
| رهـا باشد ز كثرت روزگارم |